शिक्षा अंधकार से प्रकाश कि ओर अग्रसर करने कि सनातन प्रक्रिया रही है। प्राचीन काल कि हमारी शिक्षा में गुरुकुल व्यवस्था थी। गंगोत्री से प्रवाहित गंगा कि अविरल धारा से एक ऐसे सभ्य सुसंस्कृत मूल पटक समाज कि स्थापना की जिसने भारत की गरिमा को विश्व पटल पर स्थापित किया। तत्कालीन शिक्षा "विद्या या विमुक्तये " के आदर्श से अप्लाविन्त रही। साधना का दूसरा चरण विश्वविद्यालय से शुरू होता है। जहाँ बच्चे के अज्ञानरूपी अंधकार को ज्ञान रूपी ज्योति से नष्ट किया जाता है। इसमें साधक या मार्गदर्शक प्रमुख होता है।
शिक्षा का उच्च स्तर लोगों की सामाजिक और पारिवारिक सम्मान तथा एक अलग पहचान बनाने में मदद करता है। शिक्षा का समय सभी के लिए सामाजिक और व्यक्तिगत रुप से बहुत महत्वपूर्ण समय होता है, यहीं कारण है कि हमें शिक्षा हमारे जीवन में इतना महत्व रखती है। आज के आधुनिक तकनीकी संसार में शिक्षा काफी अहम है। शिक्षा मनुष्य के भीतर अच्छे विचारों का निर्माण करती है, मनुष्य के जीवन का मार्ग प्रशस्त करती है। बेहतर समाज के निर्माण में सुशिक्षित नागरिक की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। इंसानों में सोचने की शक्ति होती है इसलिए वो सभी प्राणियों में श्रेष्ठ है लेकिन अशिक्षित मनुष्य की सोच पशु के समान होती है।
श्री एस एस पाण्डेय
संस्थापक
हमारा उददेश्य मात्र शिक्षण कार्य ही नहीं होता अपितु बालको के सर्वांगीण विकास हेतु अनेक गतिविधियां वर्ष पर्यंत चलती रहती हैं । इस विद्यालय के माध्यम से आप अवगत हो सकेंगे कि विद्यालय में एन सी सी , स्काउट गाइड, खेलकूद एवं विभिन्न कौशलों के विकास के लिए अनेक प्रतियोगिताओं का आयोजन होता है, जिसमें विद्यार्थी भाग लेते हैं और अपनी प्रतिभा को निखारते हैं । मुझे विश्वास है कि हमारे विद्यार्थी आगे चलकर प्रबुद्ध,देशभक्त एवं विविध कौशलों से परिपूर्ण सभ्य नागरिक बनेंगे एवं समाज और देश के विकास में अपना यथासंभव सक्रिय योगदान देकर अपने मानव जीवन को सफल बनाएँगे।
इसमें सहयोग करने वाले सभी विद्यार्थीगण एवं अध्यापकों को मै हार्दिक बधाई देता हूँ और उनके उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूँ
धन्यवाद
डाइरेक्टर
शिक्षा मानव समाज के सर्वांगीण विकास की आधार- शिला है | मानव को विवेकशील एवं संस्कारवान बनाकर, शिक्षा ही निरंतर उसे प्रगति के पथ पर अग्रसर होने की प्रेरणा देती है| वास्तव में किसी भी सभ्य समाज के अनुभूत सत्य की साक्षी शिक्षा ही है| शिक्षा के अलौकिक ज्ञान प्रकाश ने मानव को 'अमृतस्य पुत्रोहम्' कहलाने का अधिकारी बनाया| हम सभी शिक्षकगण अपनी विवेकशीलता, प्रगतिशील कर्मनिष्ठ एवं शैक्षणिक कुशलता को आधार बनाकर वर्तमान समय की आवश्यकतानुसार ज्ञान प्रवाह की अविरल धारा को निरंतरता के साथ प्रवाहित करने का भीष्म संकल्प लें | साथ ही कुशल निर्देशन एवं सत्य परामर्श के उचित संयोजन से छात्र-वर्ग में अंतर्निहित क्षमताओं एवं अपार संभावनाओ का समुचित विकास कर राष्ट्र- निर्माण सहयोग करें |
हमारा गुरुत्तर दायित्य है कि वैश्वीकरण के इस युग में दृढ-संकल्प शक्ति, विचारशीलता, त्याग-निष्ठा, कर्मठता एवं सदाशयता को आधार बनाकर संस्कारित कर्मनिष्ठ, प्रखर मेधा संपन्न छात्रों की ऐसी पौध तैयार करे जो ज्ञान जगत के कल्याण के साथ अपने राष्ट्र की अमर एवं अनमोल धरोहर बन सके |
धन्यवाद
प्रधानाचार्य